हिंदू धर्म में चीनी का
इतिहास
इस दुनिया के आरम्भ में जब राजा दक्ष ने जो भगवान शिव के ससुर थे ने मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करने का निर्णय लिया मगर क्योंकि उन्होंने साथ में शिवलिंग नही रखा था इसलिए प्रथा के अनुसार उस प्रतिमा को मन्दिर में नहीं ले जाया जा
सकता था। तब प्रतिमा को बनाने वाले कलाकार ने एक शिव लिंग बनाकर देवी सती को दे दिया जो
कि राजा दक्ष की पुत्री थी और उन्होंने उस शिव लिंग को साड़ी में छिपाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के साथ मन्दिर में प्रवेश करवा दिया था। जब राजा दक्ष को पता चला कि उसकी बेटी देवी सती ने एक छिपे हुए शिव
लिंग के साथ भगवान विष्णु की प्रतिमा की स्थापना की है तब राजा
बहुत क्रोधित हुआ क्योंकि वह भगवान शिव के खिलाफ था और भगवान विष्णु का एक बड़ा अनुयायी था तथा वह यह गलत धारणा रखता था कि उनके पिता भगवान ब्रह्मा को भगवान शिव द्वारा दंडित किया गया था। वह यह तथ्य नही मानता था कि यह सभी तीन भगवान ब्रह्मा, विष्णु और
शिव असल में एक परमात्मा प्रभु साम्ब सदाशिव के तीन भाग हैं। क्रोध में राजा दक्ष ने कलाकार और उसके समाज को राज्य से निष्कासित
कर दिया और उन्हें शरण देने के लिए किसी को भी अनुमति नहीं दी । तो कलाकारों का वो समुदाय शरण के लिए कैलाश -भगवान शिव के निवास पर चले गए
और वहाँ की घाटी जो अब तिब्बत और चीन है में रहने की अनुमति भगवान शिव से प्राप्त कर ली थी।
शायद यही कारण है कि चीनी और जपानी आम तौर पर शिल्पकार और अच्छे कारीगर पाए जाते हैं। बाद में देवी सती ने भगवान शिव से शादी कर ली थी जो की एक लंबी कहानी है।